बहते हुए दर्द
बहते हुए दर्द

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हज़ारों पन्नों में लिख रहे है
हम अपनी दास्तान ,
न जाने और कितने
पन्नों में लिखने होंगे,
लफ्ज़ है लाखों में
ज़रूर लेकिन
न जाने बयान
करने में इन्हे
और कितने ज़ख्म
फिर से सहने होंगे ,
हर ज़ख्म की
एक दास्तान है इन में
जो भुलाये भी न
भुला सके,
स्याही है तो महज़ एक
ज़रिया लिखने का
कलम से,
फिर क्यों लगे जैसे
बह रहे हो
दर्द-ए-लफ्ज़ इनसे?