भीड़ यूं ही नहीं लगती गंगा घाट पर
भीड़ यूं ही नहीं लगती गंगा घाट पर
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अपने कर्म को लिये चले ,
सब कोई आता गंगा घाट पर।
कुछ शुद्धि होने वास्ते ,
सब नहाये गंगा घाट पर।
सबको पता है कर्म अपना ,
यूं ही नहीं जाता सब गंगा घाट पर।
मन से अपने कर्म को धोकर ,
खुद को संतुष्ट कर लेता है।
कह देता फिर मन को अपना,
छोड़ दिया बुराईयां गंगा घाट पर।
दिखती है जो गंदगियां ,
कभी कभार गंगा घाट पर ।
असल में वो रहते हैं कर्म लोगों के,
जिसे धोने जाते हैं गंगा घाट पर।
अच्छाई भी बहुत मिलेंगी ,
कभी जाकर देखना गंगा घाट पर ।