भाव शून्य हैं
भाव शून्य हैं
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मैंने लिखी है इबारत,
शब्द ही शब्द हैं, भाव शून्य है।
इंसा ही जब इंसा का गला काटे,
तब इंसा बुत न बने तो क्या करे ?
काश ! बुत बन पाती, दिल में दर्द तो न होता
कलम न रुकती,भाव न चूकते।
आँखों में नमी है,दिल में बेचेनी है
फिर भी लेखनी चलती नहीं है।
दोष जमाने का नहीं, हमारा है
असहाय क्यों, टक्कर क्यों नहीं लेते?
अन्याय का कर प्रतिकार, आगे बढ़ो
सहना, रोना है कायरों का काम ।
होगा जिस दिन ऐसा,लेखनी न रुकेगी,
विश्वास होगा,आस होगी,चहुं ओर सौहार्द होगा।
