बेटियां
बेटियां
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कहती है दुनिया
बेटों को, चिराग,
दीपक और लाल
मगर
करती हैं बेटियां
घर को रौशन मान ......
सजाती हैं, संवारती हैं
बेल सी लतर जाती हैं
दूब सी पसर जाती है
घर की शोभा बढ़ाती है
ढेरों खुशियां लुटाती हैं
चंद पैसों के चीज़ पर
खूब निहाल हो जाती हैं
झट पहन कर इतराती हैं
हंसती और खिलखिलाती हैं
बांट लेती हैं हर सुख-दुख हमारा
और ..............
फुर्र से उड़ जाती हैं
हो जाती हैं पराई .....
बना जाती हैं अपाहिज
बेखबर बनकर भी
रहती हैं बाखबर
पाकर कोई संदेशा
झट हाज़िर हो जाती हैं
मान रखती हैं दोनों कुल का
मायके हो या हो ससुराल ।
