बेदर्द जमाना
बेदर्द जमाना
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बड़ी हैरत की बात है
बेटियां जलाई जा रही हैं,
और इंसाफ के नाम पर
क़ातिल के जुर्म दिन बढ़ाए जा रहे हैं।
पहन के चोला राजनीति का
वाह वाह की तलब लगाए जा रहे हैं,
कब तलक शिकार बनेंगी बेटियां या
सिर्फ सत्ता की भूख में बेटियों को सेंक रहे हैं?
आखिर कैसा इंसाफ है न्यायाधीश का
दुष्कर्मियों को दया याचिका देख रहे और
बेटियों को तड़पता छोड़ दिए जा रहे हैं।
बेदर्द जमाने का उसूल बताओ न
ये दर्द तुम्हें हो कुबूल तो बताओ न
हमें जलता देख बाते करते हो
कभी मेरे दर्द में शामिल होने आओ न।।