बेबस
बेबस
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वक्त से खुशी का लम्हा जैसे पल में गुज़र गया
मेरी रूह से तेरा सुरूर यूँ ही बरबस उतर गया
मैं चाह कर भी रोक ना पायी
बालू की तरह हाथ से फिसल गया
अब हर तरफ खामोशी सी है
आंखें सूखी नम -- बेबस सी हैं
दिन, महीने साल तो क्या,
कोई तारीख अब याद नहीं,
चेहरे पर हंसी जैसी कोई बात नहीं
तन्हाई, बेबसी के साये घेरे हैं मुझको
हर बारीक नस अंदर से तोड़े है मुझको
काश---- कि कुछ कर पाती
बस में होता तो वो पल वहीं रोक पाती।