Sandeep Saras
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देखे तुझे जो कोई मन में जलन हुई है।
मासूम भावना क्यों फिर बदचलन हुई है।
फूलों की कामना में काँटों को छेड़ बैठा,
बदमाश उंगलियों में अब तक चुभन हुई है।
भगवान बेचता ह...
खेल जिंदगी है
पाठशाला में र...
तू मुझे सम्भा...
तुम्हारी नींद...
नहीं बचे यदि ...
यह मतदान हमार...
ढूँढते रह जाओ...
अरमान तिरंगा ...