बचपन
बचपन
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ख़ामोश बैठी मैं
ज़िन्दगी में बीते हुए पलों में डूब सी गई थी
कुछ खास थे वो पल
जब दादा दादी की डांट से भी प्यारी सी मुस्कान आती थी
जब मां ने हाथ पकड़ हमें चलना सिखाया
और पापा ने घुड़ सवारी कराना
सफ़र सुहाना होता था
हर पल अनजाना होता था
बड़े भाई बहन तो सारी शैतानियों के सरताज होते थे
फिर से वो पल जीने को दिल करता है
फिर से बचपन में जाने को दिल करता है
हर पल को बेफिक्री में खेलने को दिल करता है
आज फिर से ज़िन्दगी को समझदारी से परे हो कर
बस खुलकर मनाने को दिल करता है
