पर्दा- एक नई प्रथा
पर्दा- एक नई प्रथा
जब वैदिक काल में स्त्री शक्ति
हर बार सभी पर भारी थी
पूजा जाता था उस शक्ति को
हर बात की वो अधिकारी थी
ना हिन्दू ना सनातन ना वैदिक काल में
एक स्त्री का घूंघट का कोई नाम ना था
संस्कार , संस्कृति का ढोंग कराकर
एक प्रथा चली जो बेनाम सा था
ये प्रथा नहीं एक प्रहार हुआ
स्त्री शक्ति पर वार हुआ
जा वेद उठा , पुराण उठा
किसी घूंघट का कोई नाम ना था
ये मुगल शासक की देन समझ
जिसने बना दी एक खोखली सी प्रथा
अब स्त्री के सम्मान पर चोट पड़ी
जिसने ना मानी ऐसी कोई सजा
ज़ोर लगा कर हर स्त्री को
मजबूर किया , परेशान किया
बड़ों के इज्ज़त का नाम से कर
हर बार स्त्री पर प्रहार किया
नज़र उनकी शैतान है
नाम हमारा खराब करते हैं
जब एक स्त्री अपने हक के लिए लड़ती है
तो हर बार उसपर वार करते हैं
इंसान नहीं हैवान हो गए लोग
देख नही पाते एक स्त्री की पहचान
कोई दिखाए उनकी औकात तो
हर बार छीन लेते उसकी पहचान।