बचपन
बचपन
कितने कर लूँ लाख जतन पर, लौट नहीं क्यों आता बचपन
चिड़ियों के संग चहचहाता, मिट्ठू सँग बतियाता बचपन।
वो बन्दर का नाच सुहाना, खेल तमाशे थे सड़कों पर
बारिश में वो छपक-छपक कर, दाग लगाते थे कपड़ों पर
मम्मी की सुन डाँट ज़ोर से,दुबक कहीं पर जाता बचपन ।
बचपन में गुड्डे-गुड़िया की, शादी करना ही भाता था
चौराहे पर कुल्फी वाला, आ-आकर शोर मचाता था
मचल- मचल कर फिर रो- रो कर,
बस जिद पर अड़ जाता बचपन।
कभी पहन मम्मी की साड़ी, माँ सी ही मैं बन जाती थी
और कभी टीचर के जैसे, छड़ी घुमा कर इतराती थी
भला बहुत था रोना हँसना, मीठी याद दिलाता बचपन।
परियों की सुन मधुर कहानी,नींद मुझे तब आ जाती थी
मेरा शोना बाबू कहकर माँ भी हर कौर खिलाती थी
अब सोचूँ क्यूँ बड़ी हुई मैं, ठहर अभी कुछ जाता बचपन।