बचपन की यादें
बचपन की यादें
बचपन के मधुर स्मृतियों का,
एक एक पृष्ठ सजा रखा हूँ।
जिसमें प्यारी, सुंदर माँ का मैंने,
सबसे पहले नाम लिखा हूँ।।
बापू की यादें तो अब तक,
कभी न विस्मृत हो पाई हैं।
बापू ने ही सच पर चलने को,
जीवन में राह दिखलाई है।।
दादा-दादी के संग घूमे-टहले,
याद आता उनका प्यार-दुलार।
दोस्तों के संग मस्ती करते जो
अब जीवन में न आए वो बहार।।
गिल्ली-डंडा व कंचे का खेल,
दोस्तों संग हमने खेला है।
छुपम-छुपाई, कुश्ती व कबड्डी,
दोस्तों संग देखा मेला है।।
खेलों के साथ पढ़ाई पर भी,
हमने ख़ूब ध्यान लगाया।
मात-पिता व गुरुजनों का कर्ज़,
मेरा जीवन योग्य बनाया।।
बचपन की वो मधुर स्मृतियाँ,
अब लौट के न हैं आने वाले।
यादों के वो सुनहरे पल,
जीवन भर न हैं मिटने वाले।।
गाँव के खेतों-मेड़ों संग जाना,
असंख्य चीजें याद आती हैं।
काश! वो बचपन वापस आए,
जो अक्सर हमें रूलाती हैं।।
फिर से लौट आ जाए बचपन,
माँ के गोदी में खेलूँ सो जाऊँ।
बापू की पढ़ने की डांट सुनूँ मैं,
फिर एक नया बचपन मैं पाऊँ।।
