बचपन की गुम वो यादें
बचपन की गुम वो यादें
ना जाने बचपन कहाँ खो गया,
वो पल वो बीता समा ओझल हो गया,।।
बचपने में हजारों भूल हमसे हुई,
कभी चप्पल टूटी कभी बरनी टूट गई,
आज भी याद है वो दिन जब सारी बरसात कीचड़ में खेले थे,
फिर सर्दी लग गई और सारी रात बुखार में तड़पे थे, ।।
ना जाने बचपन कहाँ खो गया,
वो पल वो बीता समा ओझल हो गया,।।
वो नुक्कड़ की दुकान से रोज़ इमली खाना,
राम सिंह के बाग से चुरा कर अमरूद खाना,
उन दिनों पतंग उड़ने में भी अलग मज़ा था,
बचपन सच में यादों का पिटारा था,।।
ना जाने बचपन कहाँ खो गया,
वो पल वो बीता समा ओझल हो गया,।।
तब दुनियां की समझ ही ना थी,
मन के आंगन में बचपन की ओस चारो ओर बिखरी थी,
उन दिनों नंगे पैर पूरे शहर का चक्कर लगा आते थे,
खेल कूद में हर चोट हर खरोच हम भूल जाते थे,।।
ना जाने बचपन कहाँ खो गया,
वो पल वो बीता समा ओझल हो गया,।।
बचपन में मां अपने हाथ से खाना खिलाती थी,
रोज़ रात पंचतंत्र की कहाँनियां सुनाती थी,
बचपन की बचकानी उन यादों में आज भी एक सौंधी सी महक है,
उन यादों की गूंज जिंदगी में आज भी है,।।
