बौनी उड़ान भरता हूँ
बौनी उड़ान भरता हूँ
दुनिया दौड़ती जा रही थी,
वक्त को पकड़ने की होड़ थी,
मंज़िल का नशा सा था आंखों में,
धड़कन भी खामोश थी सांसों में,
आजकल मैं पैदल ही चलता हूँ।
पर मुझे जैसे धीमी हवा की ख्वाहिश थी,
हल्की धूप और गर्म माटी में माँ सी तपिश थी,
कदमों से कदम मिलाती, बिन मौसम की बारिश थी,
यारों की टोली की जगह, हरपल तारों से भरी गर्दिश थी,
बहुत दौड़ लिया, आजकल मैं बौनी उडान भरता हूँ।
कौन कहता है कि समय भागता है,
मेरा वक़्त भी मेरे साथ पैदल चलता है,
लम्हें तराशता है, यादें संजोता हैं,
मेरा हमसफ़र बन संग जिंदगी जीता हैं,
इसलिए आजकल मैं छोटी डुबकियां लेता हूँ।
शायद कुछ सपने पूरे न हो पाएंगे,
शायद पूरी दुनिया हम घूम न पाएंगे,
पर हर मोड़ पर नया महल बनाउंगा,
हर ज़र्रे पर नया सा स्वर्ग बनाउंगा,
खुश हूँ मैं, आजकल धीरे धीरे खुद में बसता हूँ।
