बैरी चाँद
बैरी चाँद
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हर रात चाँद को,मैं देखा करती थी
उसको देख चेहरे पर अलग मुस्कान होती थी
दिल मैं एक अजीब सी राहत होती थी
पर ना जाने कहा चला गया वो चाँद मेरा
जो खो गया है बादलो के बीच कहीं
और घिर गया है अंधेरों मे कहीं
ना जाने आज ये चाँद भी बैरी निकला!