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Navin Madheshiya

Others

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Navin Madheshiya

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बैरी बदरा

बैरी बदरा

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 बैरी बदरा देख यौवन को

 बेताब हुआ है भिगाने को

 अकेली देख रास्तों पर

 तड़प पड़ा है पाने को

 बरस रहा है यौवन भी

 

बरसने लगा है अब बादल भी

 खुद को उनसे बचाने को

 सर पर दुपट्टा रखें,

 भाग रही है यौवन भी

 दौड़ पड़ी वट के आगोश में

अपना सर छिपाने को

 

निचोड़ रही दुपट्टे को

 बैरी बूंद गिराने को

 थी मदहोश हवायें भी

 उड़ा रही थी बालों को

 थी होठों पर मुस्कान उसके

 झुकी हुई थी नज़रे

 बैरी ख्यालों में डूबे

 वह खुद को ही संभाल रही..


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