STORYMIRROR

Navin Madheshiya

4.9  

Navin Madheshiya

बैरी बदरा

बैरी बदरा

1 min
366


 बैरी बदरा देख यौवन को

 बेताब हुआ है भिगाने को

 अकेली देख रास्तों पर

 तड़प पड़ा है पाने को

 बरस रहा है यौवन भी

 

बरसने लगा है अब बादल भी

 खुद को उनसे बचाने को

 सर पर दुपट्टा रखें,

 भाग रही है यौवन भी

 दौड़ पड़ी वट के आगोश में

अपना सर छिपाने को

 

निचोड़ रही दुपट्टे को

 बैरी बूंद गिराने को

 थी मदहोश हवायें भी

 उड़ा रही थी बालों को

 थी होठों पर मुस्कान उसके

 झुकी हुई थी नज़रे

 बैरी ख्यालों में डूबे

 वह खुद को ही संभाल रही..


Rate this content
Log in