बातें
बातें
बातें चुभती हैं ,
कुछ बातें चुभती हैं ,
सूई-सी चुभती हैं ,
हर पल चुभती हैं ,
घायल कर जाती हैं ,
चुभती ही चली जाती हैं ,
घाव गहरे करती ही चली जाती हैं ,
घाव जोर-जोर से चीखते ही चले जाते हैं ,
आँखें बरबस बरसती ही चली जाती हैं
और कोई दवा भी काम नहीं कर पाती है ।
फिर आँखों के आँसू सूख जाते हैं ,
होठों पर हल्की-सी मुस्कान आ जाती है ,
आँखें खुला आसमान देखने लगती हैं ,
जिंदगी एक सीख दे जाती है ,
बातों से ऊपर उठ जाती है ,
कर्म मरहम बन घाव भरते हैं
और एक नई राह दिखा जाते हैं ।
फिर भी बातें तो चुभती हैं ,
पर अब वे गहरे घाव
नहीं कर पाती हैं ,
बातें तो चुभती हैं ।