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PANKAJ SAHANI

Children Stories Classics

4  

PANKAJ SAHANI

Children Stories Classics

बाल दिवस

बाल दिवस

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सहमा-सहमा-सा चेहरा है,

धुँधला-धुँधला-सा बचपन है !


वो चन्दू थक जाता होगा,

सारा दिन सर पे बोझ उठाता होगा,

मेरा जीवन कब बन पाएगा ?

ऐसा ख़्वाब सजाता होगा !


बेला का बचपन जल जाता होगा,

जब कोई खिलौना छीन लिया जाता होगा,

बरतन क्यों साफ़ नहीं हैं ?

कह के कोई मालिक जब चिल्लाता होगा !


रहीम फूल बेचता फिरता होगा,

कभी पेन-किताब देखता होगा सड़कों पे,

यकीनन उसका मन भी,

कुछ लिखने को कर जाता होगा !


खेल का मैदान नहीं है !

भूखे जिस्म में जान नहीं है !

करवाते हो मज़दूरी दिनभर,

ये बच्चे क्या इंसान नहीं हैं ?


मैं सोचती हूँ क्या इन्सान ! क्या भगवान !

कोई इसके लिए परेशान नहीं है ?


कोई तो सँभालो इसको,

मेरे देश की क्या ये पहचान नहीं है ?

यूँ मत रौंदों बचपन इनका,

सहमा-सहमा-सा चेहरा है,

धुँधला-धुँधला-सा बचपन है !


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