औलाद
औलाद
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बचपन--
अपने माँ बाप के बेहद करीब हूँ मैं
खुदा का शुक्र है खुशनसीब हूँ मैं।
कुछ बड़ा होकर-
हर लम्हा रहता हूँ मुहब्बत की गिरफ्त में,
हज़ार कमियां हैं मुझमें
फिर भी हर दिल अज़ीज़ हूँ मैं।
जवान-
जिन माँ बाप ने अच्छाई बुराई में फर्क सिखा दिया,
मुझे मेरी मंज़िल की तरफ लगा दिया।
आज उन्ही माँ बाप की कमियां उन्हें सुनाता हूँ,
कितना अजीब हूँ मैं।
प्रौढ़-
अब पाल रहा अपने बच्चों को,
इन्हें सुधारने को हर तरह की तरकीब हूँ मैं,
अब समझ आ रही माँ बाप की कुर्बानी
पर आज ना उनके करीब हूँ मैं।
क्या अब भी खुशनसीब हूँ मैं?
