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Kusum Lakhera

Others

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Kusum Lakhera

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अति विषमता

अति विषमता

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समाज का विकास तब तक न हो पाता है 

एक वर्ग तो धन धान्य से परचम अपना लहराता है


रोटी कपड़ा मकान का उसे न दर्द सताता है ।

बड़ी गाड़ी बड़े बंगले में वह आनंद को गले लगाता है।


सुख सुविधा के साए में वह ढेरों खुशियाँ पाता है।

पर भौतिक समृद्धि के बावजूद अंतर्मन को खाली पाता है।


दूसरी ओर एक दूसरा वर्ग है जो अभाव को गले लगाता है 

ये श्रमजीवी बिन पूंजी स्वयं को बेबस लाचार ही पता है ।


रोटी के बगैर ही कई बार इन्हें खाली पेट सोना पड़ जाता है

बिन छत के अंबर के नीचे सड़क पर अपनी सेज बिछाता है


निर्धनता के मारे बेचारे बच्चे, कूड़े के थैले से, कबाड़ में,

ढूंढते खाली बोतल, लोहा, प्लास्टिक, और बरतन ।


ताकि बेच सके इनको और मिल सके थोड़ा सा धन ...

उस धन से फ़िर वह अपनी भूख मिटाते और सोचते ..


क्या मिल पाएगा कल भी हमें कुछ अच्छा सा भोजन ..

क्या जी पाएंगे हम भी धनी लोगों सा सुख से युक्त जीवन ।



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