अथाह की थाह !
अथाह की थाह !
1 min
173
नदियों को मिलना होता है
अपने उस अथाह सागर से
समा कर उस में बन जाती है
वो नदी भी फिर अथाह सागर
फिर उसका प्रवाह भी होता है
उसी दिशा में जिस दिशा में
उसका वो विस्तार बहता है
तब ही तो वो उसके समीप
आकर भी खुद को बाँट लेती है
स्वयं को कितनी ही धाराओं में
थाह अथाह की लेना चाहती है
शायद पहले सम्पूर्ण विलय के !
