अर्पण कुमार की कविता 'हिस्सा'
अर्पण कुमार की कविता 'हिस्सा'
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नवंबर की गुनगुनी धूप को
छक कर पीना
चाहता है
विराम दे सारे कार्यों को
आ जाता है वह
अपनी छत पर
.....................
उसके हिस्से के सूरज का
कत्ल हो जाता है।
……………..
