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अर्पण कुमार की कविता 'बड़ा बेटा'

अर्पण कुमार की कविता 'बड़ा बेटा'

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बड़ा बेटा

अर्पण कुमार

 

वृद्ध होती

दो जोड़ी आँखों की चमक

असमय फ़ीकी न पड़े

बदरंग और मामूली से चेहरों पर

जीवन के उत्तरार्ध में

आ जाऐ

थोड़ा रंग

थोड़ी विशिष्टता...

बड़े बेटे के सपने

किसी परकटे पक्षी की भाँति

घर की मुंडेर नहीं लाँघते

हठीला कोई सपना

सिर धुनता है जब

नींद घबराकर उठ बैठती है

........


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