अनुभव की सनक
अनुभव की सनक
यूं ही कभी कभी बुढ़ापा जता देता हूँ,
मैं बिन पूछे ही अक्सर किस्सा बता देता हूँ ,
पर मिटटी भर मोल नहीं पाता ये मेरा कनक,
मेरा अनुभव तो देखो अब कहलाता है सनक।
कहते है मैं तोते की तरह रटता हूँ,
जाने क्यूँ अब अपनों को ही खटता हूँ,
कभी सूखे के बादल की तरह
आसमान में खो जाता हूँ,
अक्सर बिन बारिश की बूंदों के,
फिर मैं बादलों सा फटता हूँ
मैं भी जिन्दा हूँ एक उम्र लेकर,
नहीं किसी को भी होती इसकी भनक,
मेरा अनुभव तो देखो अब कहलाता है सनक।
मुझे लाठी थमा कर मुझे सहारा देते हैं,
सहारा नही देते भईया किनारा देते हैं,
पहचान बतानी हो तो नाम हमारा देते हैं,
मतलबी कहते है कि काम हमारा देते हैं,
बीज को वृक्ष करने वाला मैं माली हूँ,
तुम्हारा उत्साह बढाने वाला मैं ताली हूँ,
पर माटी की ढेर से चाहते है सोने की खनक,
मेरा अनुभव तो देखो अब कहलाता है सनक।
