अंतर दादी नानी का
अंतर दादी नानी का
मां मां की आवाज़ कानों में ऐसे बसी थी
दिल को तो मां सुनने की आदत पड़ी थी,
सुबह से रात तक घर में, मां की रट लगी थी
ख़ुशनसीबी द्वार खोलकर, घर में बसी थी,
किंतु मां की आवाज़, एक दिन दूर हो गई
हंसी चेहरे की भी, मां की फिर गुम हो गई,
हर आहट पर मां की, गूंज सुनाई देती थी
किंतु उनको तब, निराशा ही हाथ लगती थी,
वर्षों तक मां सुनने के, आदी थे जो कान,
मां शब्द फिर से सुनूं बस यही था अरमान,
नाराज़ होकर मां ने बेटे को, फिर फोन लगाया
इतने दिनों से बेटा, तुम्हारा फोन क्यों नहीं आया?
किंतु जवाब बेटे की तरफ से, फिर जो आया
दिल और दिमाग, उसे बर्दाश्त नहीं कर पाया,
दादा दादी भी तो मां सुनने के लिए तरस गए
किंतु आप के डर से, पापा उनसे दूर होते गए,
अब क्यों दुख हुआ, जब समय आप पर आया
मां सुनने के लिए, आपने कितना उन्हें तरसाया,
उनका ख्याल, आपके दिल में जो आया होता
तो आपके जीवन में, यह पल कभी ना आया होता,
मां मैं रोज़ फोन लगाऊंगा, पर आप दोनों भी
दादी को फोन लगा लेना, मां कहकर बुला लेना,
मां किस बात की दी, तुमने उन्हें इतनी बड़ी सज़ा
नानी को प्यार किया, पर दादी को क्यों भुला दिया,
फोन रख ख़ामोश हो गई, गलतियों को स्वीकार किया
जितना हो सका, अपनी गलतियों का पश्चाताप किया,
जब आई बात स्वयं पर, तब ही यह एहसास हुआ
जीवन में अपने उनसे, कितना बड़ा यह पाप हुआ,
फोन लगा फिर माफ़ी मांगी, मां कहकर प्रणाम किया
जैसा जीवन में कभी ना पाया, वैसा सुकून प्राप्त किया।