अनकहे रिश्ते
अनकहे रिश्ते
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दोस्ती और खून के रिश्तों के
अलावा भी कुछ रिश्ते होते हैं
जिनका ना कोई नाम होता है
ना कोई पहचान
बस अनजाने से अनकहे से
वो रिश्ते होते हैं
इनमें ना होता कोई अधिकार
ना ही कोई स्वाभिमान
बस मन की गहराइयों से बनते है,
जो सच्चाई के रिश्ते होते हैं
जब अपनों से टूटते, बिखरते
और सिसकते हैं
तब देते हैं ये साथ और बिन
कहे ही बन जाते हैं
ये बस अनजाने से अनकहे से
रिश्ते होते हैं
यें भावों से भरे ,बहुत ही खरे होते हैं
स्वार्थ, उम्मीद से परे ये इंसानियत
के रिश्ते होते हैं
बस दिलों में ही पला करते हैं
खामोशी से जो निभते हैं
अनजाने से अनकहे से वो रिश्ते होते हैं।
