अनकहे रिश्ते
अनकहे रिश्ते
रिश्ते साथी- सहारे सब छूट जाते है।
तब पैरों तले की ज़मीन खिसकी हुई पाते हैं
सूखी ज़मीन पर सुनामी बवंडर आते हैं
तो दुखों परेशानियों मुसीबतों के
पत्थर गाद बहा -बहा
कर लाते हैं
जरूरत पड़ने पर सभी भूल जाते हैं
पहचान कर भी दूर से ही नज़रें चुराते हैं
तब कुछ अच्छे कर्मो का इनाम पाते हैं
तो अजनबी अनजान ख़ुदा का
रूप बनकर साथ निभाते हैं
कुछ भी ना कह कर सब कुछ कह जाते हैं
कभी तन्हाइयों में कुछ ऐसे ही
अनकहे रिश्ते याद आते हैं
