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Sandeep kumar Tiwari

Others

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Sandeep kumar Tiwari

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अंधेरों के मसीहा

अंधेरों के मसीहा

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वो बेखौफ़ ही घूमा करते हैं

जो बादल घना करते हैं 

अंधेरों के मसीहा हैं जितने,

अब सूरज बना करते हैं 


जाने किस नजरिये से दुनिया देखा करते हैं

गड़बड़-सड़बड़ करते हैं सब बेलेखा करते हैं 

पत्थर नहीं दिख पाता जिनके पैरों के नीचे

फ़लक़ के चाँद में वो, अब दाग देखा करते हैं


मैने सुना है, ये सब लोग कहा करते हैं 

गरीबों के हमदर्द महलों में रहा करते हैं 

उस तट पे अक्सर लोग प्यासे मर जाते हैं  

जिस तट से होकर समंदर बहा करते हैं


जाने ताजमहल किस-किस ने बनाया 

नाम शाहजहाँ का लोग लिया करते हैं 

निखार देते हैं औरों को जो अपने हुनर से 

वो मज़दूर अपने हाथों का बलिदान

दिया करते हैं


हमारी नई सदी कि तरक्की हो गयी देखो 

मिट्टी के खिलौने अब नहीं बना करते हैं 

कागज़ के फूलों पर गुमां हो रहे हैं 

मोम के पुतलों के भौहें तना करते हैं


वो बेखौफ़ ही घूमा करते हैं

जो बादल घना करते हैं 

अंधेरों के मसीहा हैं जितने

अब सूरज बना करते हैं ।



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