अनछुई कविता
अनछुई कविता
हमने भी सोचा
अपनी कविताओं को
कोई नया रूप दे दूँ !
नव श्रृंगारों से नव परिधानों से
अलंकृत करके
नव प्राण उसमें फूंक दूँ !!
बड़े परिश्रम से केस का
हमने रूप दिया ,
परिधानों के अनुकूल
उनकी मांग में
सिंदूर किया !!
मधुर -मधुर शब्दों के काजल से
नयनों को सुशोभित किया !
हिरणी की मोहक अंखियों ने
हमारा मन मोह लिया !!
लालिमा उतार कर
लाल -लाल रंगों से
ओठों को लाल किया !!
चूरामणि ,चन्द्रहार ,झुमका
ओ कानों की बाली
नाक में नथिया
से उनका साजो श्रृंगार किया !
कमर में डढकस
पैरों में रुनझुन पायल भी
हमने पहना दिया !!
परमार्जित शब्दकोशों
में लिपटी
मेरी कविता
अपनी घूँघट में सिमट रही थी !
किसी ने उन्हें
नहीं देखा ना पढ़ा
वह लेखनी में ही उलझ
कर रह गयी थी !!
