STORYMIRROR

Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Others

4  

Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Others

अनछुई कविता

अनछुई कविता

1 min
541


हमने भी सोचा

अपनी कविताओं को

कोई नया रूप दे दूँ !

नव श्रृंगारों से नव परिधानों से

अलंकृत करके

नव प्राण उसमें फूंक दूँ !!


बड़े परिश्रम से केस का

हमने रूप दिया ,

परिधानों के अनुकूल

उनकी मांग में

सिंदूर किया !!

मधुर -मधुर शब्दों के काजल से

नयनों को सुशोभित किया !


हिरणी की मोहक अंखियों ने

हमारा मन मोह लिया !!

लालिमा उतार कर

लाल -लाल रंगों से

ओठों को लाल किया !!

चूरामणि ,चन्द्रहार ,झुमका

ओ कानों की बाली

नाक में नथिया

से उनका साजो श्रृंगार किया !


कमर में डढकस

पैरों में रुनझुन पायल भी

हमने पहना दिया !!

परमार्जित शब्दकोशों

में लिपटी

मेरी कविता

अपनी घूँघट में सिमट रही थी !

किसी ने उन्हें

नहीं देखा ना पढ़ा

वह लेखनी में ही उलझ

कर रह गयी थी !!



Rate this content
Log in