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S.Dayal Singh

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S.Dayal Singh

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अलार्म

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**अलार्म **

ऐ भाई ! सम्भल के चलना,

होशियार हो के रहना।

आगे है दरिया आग का,

खबरदार हो के रहना।

ऐ फूल ! जरा ठहरना,

बात राज़ की बताऊँ,

भंवरे की नीयत है खोटी,

चोभदार हो के रहना।

वफ़ा जो करके देखा,

मिला है धोखा अक्सर, 

कोई वफ़ा जताए तुमसे,

रौबदार हो के रहना।

नई रोज़ नया कोई झगड़ा,

होता है नया ही मसला,

तुम मंदिर हो के रहना,

कि मज़ार हो के रहना।

चंद छिल्लड़ों की ख़ातिर,

बिक जाता ज़मीर यहां पर, 

तुम सौदागर बन के आना,

 कि बाज़ार हो के रहना।

घर से बाहर निकलने की,

हिम्मत कहाँ से लाऊँ,

कितना भी क्यों न तुम को, 

वफादार हो के रहना।

सियारों की खाल ओढ़े,

भेड़िये है घूमा करते,

बचने का उनसे पहले,

हथियार हो के रहना।

मुमकिन है निपट लेना,

हर खतरे से लेकिन, 

शर्त ये भी है कि पहले,

तुम तैयार हो के रहना।

--एस.दयाल सिंह --

छिल्लड़=यहां पैसा या टका समझें।


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