अज़ब प्रार्थना
अज़ब प्रार्थना
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प्रभु, प्रार्थना है मेरी
कर दो कुछ करम
बदल दो मेरा तन मन।
उदास हूँ, अकेला हूँ
किसी के इंतज़ार में
निरीह बेचैन सा हूँ।
अब खिड़कियाँ खुलती नहीं
दरवाजे खटकते नहीं
बेजान हर चीज़, उदास मैं।
मुँह की रंगत गई
लब की हँसी छिन गई
मायूसी घर कर गई।
लोगों के स्वार्थ ने
जाति भेदभाव ने
मुझे उजाड़ दिया।
सूना कमरा, सूनी दिवारे
सूना हो गया मेरा मन
प्रेम का कोई दीपक जला दो।
करबद्ध ये प्रार्थना मेरी
मुझ सूने कमरे को तार दो
अपने प्रकाश पुँज से शोभित करो।