ऐसा क्यों
ऐसा क्यों
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धुंधला - धुंधला सा है सवेरा
कुछ होने को है,
दिल की बेचैनी बता रही है,
कुछ खोने को है।
रात का अंधियारा अभी छटा नहीं
सुबह का उजियारा भली प्रकार दिखा नहीं
संभल - संभल चल रहे हैं ,
पर पैरों का डगमगाना रुका नहीं।
एक पहेली है जिंदगी,
कई सवाल - जवाब में उलझी है जिंदगी,
जो अपने है ,वो अपने है ही नहीं,
फिर भी उनके है पीछे उलझी है जिंदगी।
