ऐ रात
ऐ रात
ऐ रात तू पर फैलाए कहाँ से आती है,
नींदों में पलने वाले सपने सुहाने कहाँ से लाती है,
जो थक जाते उनको अपनी आगोश में ले जाती है,
ऐ रात तू पर फैलाए कहाँ से आती है,
दिनभर की गर्मी में थक जाते,
तू रात को शीतलता कहाँ से लाती है,
दिन भर के शोर में जाने कितना में उलझा था,
तुझसे मिलकर मेरे मन को सुकून मिल जाता है,
ऐ रात तू पर फैलाए कहाँ से आती है,
धूल भरी आंधी और प्रदूषण पूरा दिन सहते हैं,
रात होते ही मधुर वाणी से कानों में कुछ कहते हैं,
अपने सपनों की दुनिया में जाने क्या क्या बुनते हैं,
धरती को शीतल करने की वह चांदनी कहाँ से लाती हो,
ऐ रात आज बता दे तू पर फैलाए कहाँ से आती हो I
