अधूरेपन की संतुष्टि
अधूरेपन की संतुष्टि
किसी के लिए,
पा लेना बस असीम धन समृद्धि।
यही है बस असल में संतुष्टि।
किसी गरीब के लिए,
थोड़े में भी है संतुष्टि।
वहीं कई अमीरों को,
सब कुछ पाकर भी नहीं मिलती संतुष्टि।
असल में,
जो नहीं है पास।
लोग उसी चीज़ को पाने की,
चाहत को समझते हैं संतुष्टि।
किसी को अपने प्रेम को,
पा लेने में मिलती है संतुष्टि।
परंतु,
सब कुछ पा लेने में ही हो संतुष्टि।
ऐसा जरूरी तो नहीं।
अधूरेपन में भी होती है,
कमाल की संतुष्टि।
और
जिसे पता ही ना हो कि,
क्या है संतुष्टि??
उसके लिए,
किसी भी चीज़ में,
नहीं हो सकती संतुष्टि।
जैसे,
बात करें प्रेम की तो,
ज़रूरी तो नहीं कि,
प्यार को पा लेने में ही हो बस संतुष्टि।
यदि प्रेम ना हो पूरा।
रह जाए तो कभी अधूरा।
किसने कहा कि,
उस प्रेम में नहीं कोई संतुष्टि??
किसी के लिए विरह में भी होती है संतुष्टि।
श्री कृष्ण ने,
राधा रानी से बिछड़ने के बाद भी,
उनकी यादों में ही,
ढूँढ ली थी संतुष्टि।
और
उनकी मुस्कान प्यारी तो है,
ना जाने कितने भक्तों की संतुष्टि।
राधाकृष्ण की प्रीत सिखाती है यही कि,
प्रेम में अधूरेपन के बाद भी,
हो सकती है संतुष्टि।
अधूरेपन में भी होती है,
कमाल की संतुष्टि।
कमाल की संतुष्टि।
