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Rachna Vinod

Others

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Rachna Vinod

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अडिग प्रहरी

अडिग प्रहरी

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पकड़ा-पकड़ी में हंसते-खेलते हुए

मेरे साथ बढ़ते हुए

बचपन का पौधा खिलता रहा

साथ-साथ मेरे पलते हुए।


पनपने फूलने की आस में

बचपन के भोलेपन मे

तूफ़ानी बवंडरों से अन्जान रहा

चौकस निगाहों में।


खेल-खेल में जिसको सींचते हुए

आंधी-झक्खड़ में जिसे भींचते हुए

यह मेरी सोचों को सींचता रहा

मेरे अंतर्मन को समझते हुए।        


धीर गंभीर मौन प्रतिक्षारत

झेलते सभी झंझावात

जड़-चेतन सभी को शरण देते हुए

न उकलाहट न उकताहट।


नन्हे पौधे का विशाल परिवर्तित रूप

अडिग प्रहरी कितनी भी कड़कती धूप

अनगिनत पंछियों का बसेरा

पथिकों को सुख देता शीतल स्वरूप।


बिना किसी लाग-लपेट

मेरे बचपने को सहेज

बड़प्पन में मुझे दूर पीछे छोड़ते हुए

अपनी घनी छत्रछाया में समेट।

     


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