अद्भुत!
अद्भुत!
ये आकाश, ये पृथ्वी, ये सृष्टि,
सब अद्भुत!
कौन जान सका इस शून्य की ऊँचाई, समंदर की गहराई,
सब अद्भुत!
ये समुद्र का खारापन,
नदियों की मिठास,
मिट्टी की सौंधी खुशबू,
उस पर बारिश की फुहार,
सब अद्भुत!
ये हवा का आना,
फिर ना जाने कहाँ ठहर जाना,
सूरज की तपिश,
सितारों का टिमटिमाना,
सब अद्भुत!
झरने का यूँ झरझराना,
पहाड़ों से उठते धुएँ,
झीलों की शालीनता,
सरोवर की सरलता,
सब अद्भुत!
सरिता का पथ कभी ना बदलना,
जलधि का जल कभी ना सूखना।
रंग बिरंगी मछलियाँ और पानी में उनका तैरना,
सब अद्भुत!
जाने किस पत्थर पर रखी पृथ्वी की नींव,
किस माप में मापी ब्रह्मांड की विशालता,
जगत के कटोरे में कंचे रूपी ग्रहों
का दौड़ना,
सब अद्भुत!
किसने बंद किया समुद्र का दरवाज़ा,
डांट कर रोक दिया खड़ा रह यहीं,
अब आगे ना जा।
भोर को जगाना,
हिम को बरसाना,
कहाँ रखा है ये ओले का
भंडार,
सब अद्भुत!
किसने दी बिजली को गड़गड़ाहट,
सिंह की दहाड़,
मगरमच्छ की कठोर पीठ,
घोड़े का बल उसकी दुलकी चाल,
सब अद्भुत ! सब अद्भुत !
