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डॉ. रंजना वर्मा

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डॉ. रंजना वर्मा

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अद्भुत प्रेमी

अद्भुत प्रेमी

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तपता सूरज

आग उगलता

नयन तरेरता

दहक उठी

भूमि - रज।

अद्भुत प्रेमिका

भीत चन्द्रमा 

देखे दूर से

सहमी दृष्टि से

अनोखा है उसका प्यार 

छिपाए हुए हृदय में

मिलन की चाह ...

विकल संसार

होकर उत्तप्त

माँगता शशि की

शीतल गोद में

पनाह।

सह ही नहीं पाता

प्रिय रवि का

उत्कट प्रेम ..

बस दूर से देखकर ही

हो जाता है संतुष्ट

बह जाता है

रवि रश्मियों के प्रवाह में

करता रहता है प्रतीक्षा

मिलन की

अनवरत।


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