अभ्यास और लगन
अभ्यास और लगन
हम कभी -कभी
गुनगुना लेते हैं,
कुछ- कुछ कभी
हम गा लेते हैं !
पर लोग देखते
नहीं ना सुनते हैं,
अंत में यूँ ही तालियाँ
बजा देते हैं !!
राग और लय को
पहचानते नहीं,
उतार -चढ़ाव को
हम जानते नहीं !
ताल मात्रा कभी
भी मिलते नहीं ,
लोग भूल के इसे
हमें सुनते नहीं !!
फिर भी हम
महफिलों में गाते हैं,
अपनी गायकी
लोगों को सुनते हैं !
अपनी नज़रों में
तो अच्छे लगते हैं,
ना जाने दूसरे
क्या कुछ कहते हैं !!
अब हमारे दिन भी
लौट के आयेंगे,
हम फेसबुक के
पन्नों में इतरायेंगे !
विडियो में लाइव
करके सुनायेंगे ,
उनसे विडियो
लाइक करवाएंगे !!
एहसास हम कुछ
यूँ करने लगे,
लाइव को
तिरस्कार करने लगे !
बैठकर हम
आंकलन करने लगे ,
अपनी लाइव को
स्वयं सुनने लगे !!
गलतियाँ सारी
समझा में आ गयी,
अभ्यास से ही
आवाज़ मिल गयी !
खोयी प्रतिष्ठा
आज से ही मिल गयी,
अपनी मंजिलों की
दिशा मिल गयी !!