अभिलाषा
अभिलाषा
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मेरा यह जीवन सारा बीता गुरु स्मरण करते- करते।
यही अरमान है दिल का करता रहूं भजन चलते- चलते।।
अब नहीं भाता कुछ भी मन को सकल सृष्टि तुम्हारे वश में।
एक दिन तो जाना ही होगा बीते जीवन जपते- जपते।।
तेरी माया तू ही जाने रहस्य जीवन का समझ न पाया।
हर घड़ी अपना ही सोचा थक गया सब कुछ भरते-भरते।।
बचा जीवन कुछ करना चाहता प्रकाशित कर दो जीवन मेरा।
तुम्हारे यशगान जन-जन तक पहुंचे अंतिम चाह है मरते- मरते।।
जीवन नैया के तुम हो खिवैया भवसागर में मेरी नैया।
"नीरज" की यही "अभिलाषा" प्राण निकले तो भजते-भजते।।
