अब तो तू भी जाग जा रे इन्सां
अब तो तू भी जाग जा रे इन्सां
अब तो तू भी जाग जा रे इन्सां
कहीं पे खड़ा है मुसलमां कहीं पे खड़ा है हिन्दू
हर कोई अपने लिए है जाग पड़ा
बस तू ही इन्सां है सोया पड़ा
अब तो तू भी जाग जा रे इन्सां
किसी को है मस्जिद की पडी़,
किसी को पड़ी है मंदिर की
ये तंग दिल है दुनिया उसे है पत्थर की पड़ी
तू सोया है इन्सां तेरी दुनिया है नंगे बदन पड़ी
अब तो तू भी...
किसी के लिए अपनी किताबें बड़ी हैं
किसी के लिए हैं ये सरहदें बड़ी
अपनी कद्रो बका के लिए
ये दुनिया है लड़ पड़ी
अब तो तू भी...
ये दीन ओ धर्म का अजब आलम है छाया
गैरों की सरकशी का है जो दस्तूर बनाया
मज़हब परस्ती के लिए इन्सां जा रहा जलाया
अब तो तू भी...
हर गली हर मकां बन गया किसी का झमेला
कोई मेरा कोई तेरा
रह गया रहीम अकेला
खालिक की इस खता से मचा है ये मेला
अब तो तू भी...
