STORYMIRROR

Indu Jhunjhunwala

Others

3  

Indu Jhunjhunwala

Others

अब तक छप्पन

अब तक छप्पन

1 min
258

बीते इक इक करके छप्पन बसंत जीवन के।

कुछ नासमझी मे बीते ,

कुछ अति समझी में उलझे।

कभी पतझड में भी खिलते,

कभी फाल्गुन में भी सूखे।

क्या कहूँ तुझे वो फसाने, बरसे जो सावन बनके। 

बीते इक इक करके छप्पन बसंत जीवन के।


सरसों फूले जब आँगन,

लोहडी गावे जन पावन।

पतंग की डोर ना सम्भले, 

कैसे प्रियतम मन भावन।

मधुमय रातों में गूंजे, बिरहा के गीत अनल के,

बीते इक इक करके छप्पन बसंत जीवन के।


मथुरा की कुंज गली में, 

राधा के संग ना मोहन।

बांसुरी की धुन भी फीकी,

गोपियों के दिल में क्रंदन।

क्या सुनोगे तुम वो तराने, रहगए जो तरस तरस के।

बीते इक इक करके छप्पन बसंत जीवन के।


Rate this content
Log in