आया वसंत
आया वसंत
हेमंत की ओस जड़ी चादर उतारकर
मृदु सूर्यांशू के लावण्यरथ से उतरकर
शिखर से घाटी की ओर प्रसरण कर
समस्त विश्व में अमृत रस बरसा कर
देख सखी! आया वसंत, आया वसंत।
ओस-कण पर पड़ती पहली किरण
बिन-पंखों के उड़ता चंचल मन
सुगंध-बाण से बिद्ध है वन-उपवन
मादक रस में डूबा है जन-जीवन
दश-दिक् पुकारे, आया वसंत, आया वसंत।
कोयल के मधुर विरह-गान से
सर-सरिता के लय-ताल से
पक्षियों की लघु प्रणय-कलह से
युगल गीतों की मधुर तान से
है मचला मन, आया वसंत, आया वसंत।
सात रंगों से रंगी है धरती
राग, द्वेष, दुख, पीड़ा हरती
विदग्ध ह्रदय को आश्वासित करती
प्राणों में नवल अमृत भरती
हर्ष सर्वत्र, आया वसंत, आया वसंत।
अनजाने ही खुलती स्मृति की कड़ियाँ
नेत्रों से बरस पड़ती अश्रु की झड़ियाँ
कहीं विरह तो कहीं हास्य की लड़ियाँ
किंतु मन को जकड़े हैं ये कैसी हथकड़ियाँ?
विषाद हरने है आया वसंत, आया वसंत।
अंधकार रूपी निराशा हो पल में हल
अगर यूँ ही आ जायें प्रियतम कल
है सहस्र युगों की तपस्या का फल
जो करे विषादमग्न जीवन को सफल
आस का कर्णधार, आया वसंत, आया वसंत।