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Bhavna Thaker

Others

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Bhavna Thaker

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आवागमन

आवागमन

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अपनी ओर दबे पाँव बढ़ती मौत से बेख़बर 

साँसें

दिल से कुछ यूँ लिपटी रहती हैं जैसे वीणा की तार से सरगम...!


हाँ, हर एक साँस की मंज़िल 

मौत ही तो है ,

जो पल पल लेने अपनी आगोश में बेकली सी बवंडर की रफ़्तार से बढ़ती है,

साँसों को खींचती अपनी ओर,

जब कि हम जानते हैं मौत की हकीकत

न ख़त न ख़बर,

बिना आहट के आ धमकती है 

हम बेख़बर लिए जाते है हर धड़क पर साँसे 

मस्ती में..!


आवागमन की इस लय को ज़िंदगी कहते हैं

देह सजी है बस साँसों के श्रृंगार से,

मौत की बारिश धो देती है जब

तब हकिकत बयाँ होती है..!


ज़िंदगी के एकांकी नाटक पर पर्दा गिरते ही

मौत का 

सिमटकर रह जाती है साँसे,

थम जाती है अनंत की बाँहों में विश्राम लेती ठहर जाती है..!


साँसें आख़री पड़ाव पर छोड़ जाती है साथ तन का,

है न कितना छोटा सा अफ़साना देह ओर साँस के बीच खेलती ज़िंदगी का..!


छूटती हैं साँसे तभी तो विश्राम मिलता है तन को

और आत्मा तैयारी करता है,अपने नये सफ़र की,

खोजने चल पड़ती है नया तन हमसफ़र सा,

सच्चाई को समझो तो ज़िंदगी कोई खेल नहीं, एक इंसान का जन्म से लेकर आख़री पड़ाव का सफ़र है

किसी का अनचाहा किसीका मनचाहा।


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