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Satyawati Maurya

Others

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Satyawati Maurya

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आत्म निर्भर स्त्री,,,,

आत्म निर्भर स्त्री,,,,

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कभी अपनेपन में सोचा था,

तुम्हारे भूरे बटुवे पर अपना हक ,

के बिना पूछे निकाल सकती हूँ 

कुछ रुपये ज़रूरतों के लिए।

कुछ रिश्ते तुम्हारे सहेजे हैं ,

इससे कुछ अपने क़रीबियों का

भी जतन किया है।

ज़रूरतें मेरी या बच्चों की भी होती होंगी 

कुछ,ये कब जाना तुमने?

कुछ मांगें सिर्फ़ मुझसे ही कह के 

पूरी करवाई है सबने।


पर कई बार कुछ,,

हल्के हुए बटुए का भार अंदाज़ कर

तुम मुझे उलाहना ,ताने देते 

और मुझे हल्का कर देते।

अपनी कमाई की धौंस 

देती बोली बोलने लगते तो,

तुम कितने दूर और पराए लगते थे।


मेरा भी ज़मीर है,स्त्री हूँ तो क्या हुआ?

घर -परिवार ,बच्चों के लिए 

कभी दहलीज़ न लांघी थी,

वो मेरा प्यार था उनके लिए।

पर अब मजबूर नहीं मजबूत हूँ ,

इरादों से मैं।


अपनी धारणा बदली है

सशक्त मैं भी हूँ, कल तक,

दायरे में ख़ुद को समेटा था,

अब दायरे से मुक्त हो ,

अपनी पहचान बनाने चली।

क़ाबिल तो थी ही,पहले भी

अब आत्मनिर्भर होने चली हूँ।



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