आशना
आशना
1 min
435
अल्फाज कौनसे लिखू जो एहसास करा दे अपनेपन का मुझे
दबाकर कलम लबो मे सोचती रहती हूं मैं
बोती वही बीजों को जो संभालकर रखे थे मैंने
फिर से वही फसल को नए पन से काटती हूं मैं
कौन आया है पीकर अमृत इस जहान मे
जीते जी जिंदगी पर तरस खाती हूँ मैं
मेरे रूबरू था नादान दिल बेरहम आशना
मुट्ठी भर इश्क को हसरत की मानिंद छुपाती हूँ मैं
गलती से रखा था सल्तनत में तेरे हमने कदम
अभितलक रिहाई की ख्खाहिश न कर पाई हुँ मैं
मलमल के पांव पड़ते थे काँटो की दहलीज पर ' नालंदा
छलनी हुए रिश्तो को न सहज कर पायी हूँ मैं!