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Neerja Sharma

Others

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Neerja Sharma

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आपके मन का सबसे बड़ा डर

आपके मन का सबसे बड़ा डर

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डर

वो भी सबसे बड़ा

सच कहूँ 

बड़ा छोटा तो पता नहीं 

डर तो डर है 

एक मिनट में उमड़ आता है 

बात गहरी हो या न हो 

मन यूँ ही घबराता है।


एक गृहस्थ के जीवन में 

कौन सा पल है ?

जो बिना डर के निकले ?

हर पल एक डर तो समाया रहता 

वो भी बिना खास कारण

होनी-अनहोनी के बीच 

जिंदगी की कशमकश में

डर में जीने की आदत 

अब हर इंसान को हो गई है।


घर से निकला शाम को लौटकर आएगा?

नहीं मालूम...

बच्चा ट्यूशन या स्कूल ही गया होगा ना?

हैलमैट पहना होगा?

फिर डर...

हर छोटी मोटी बात में डर...

यहाँ तक कि

कूकर की सीटी नहीं आई 

दाल जलने का डर...

अब तो इस डर में जीने की आदत है।


माँ होने के नाते 

सबसे बड़ा डर 

बच्चों को लेकर था 

जिसको अब पार कर चुकी हूँ। 

जब बच्चे कालेज गए 

आज की इस दिखावे की दुनिया में 

समाज में फैली उत्श्रृंखलता व लालसाओं के कारण 

पिछले कुछ सालों में सहा है यह डर 

जब तक घर नहीं आ जाते थे 

कर लेती थी दो-चार फोन 

चोरी-छिपे चैक करना उनका बैग

यहाँ तक कि प्यार करने के बहाने 

देखना कोई स्मैल तो नहीं।


अपने संस्कारों पर विश्वास था

पर समाज में फैली बुराइयों का क्या?

युवा मन चंचल होता है 

जल्दी भटक जाता है 

दुनिया की चमक-दमक आकर्षित करती है।


बच्चे भी समझते थे 

मजाक उड़ाते थे 

माँ प्यार नहीं,

क्या सूँघ रही हो पता है!!!

टिचर हो ना!!!

शक मत किया करो...

जब मैं कहती-माँ भी हूँ

तो सब बात पलट जाती 

और प्यार से बेटे की झप्पी मिल जाती।


कभी किसी को नहीं बताया ये डर 

बच्चों को टोकना 

उनके खर्चे का पूछना 

सब इसी डर की वजह से तो था 

शुक्र है भगवान का 

सब ठीक रहा...


मुझे लगता है 

औरत का मन

भगवान ने ऐसा बनाया 

हर किसी के लिए चिन्ता 

अनहोनी का डर 

अच्छा हो तो नज़र लगने का डर 

न हो तो डर...


आज सब कुशल है 

बच्चे पढ़ चुके है

पर जब भी सोचती हूँ 

वो कालेज के उनके साल 

तो हँसी आती है अपनी बेवकूफी पर

जब हस्बैंड सोते थे और मैं बच्चे के आने का इंतज़ार...

क्या करूँ माँ जो हूँ 

सब स्वाभाविक थी।


लो जी 

ये थी मन के सबसे बड़े डर की कहानी 

अब बन गई है यादें पुरानी 

आज लिखना था 

सो लिख दिया 

वरना मैं 

छाया नहीं छूती 

बेकार में दुख दूना हो जाता।


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