आख़िर कब तक
आख़िर कब तक
![](https://cdn.storymirror.com/static/1pximage.jpeg)
![](https://cdn.storymirror.com/static/1pximage.jpeg)
ठान लो अब तो आँखें खोलो,
कब तक ये सब सहना है,
जिसके बल पर धरती थमी
क्यूँ उसे ही पल-पल मरना है।
जीस्त को ज़िंदा रखना है मुझे अपने अंदर,
नहीं मर-मर के जीना है मुझे अंदर ही अंदर ,
नारी हूँ दिखाना है नारायणी बनकर,
पूजे ना चाहे कोई परवाह नहीं,
खुद के वजूद को उपर उठाना है मुझे।
ना सहने हैं पग-पग ताने उल्हाने मुझे,
एक एक को मुँह पर सुनाना है मुझे,
बहुत उछाल लिये बलात्कारियों ने
अपने हवस के सिक्के,
अब गर्विता की गरिमा से
मिट्टी में मिलाना है उसे,
दहेज़ के भूखे भेड़ियों ने
बहुत जलाया मासूमों को,
अब गिन-गिनकर सबको जलाना है मुझे।
निर्ममों ने नहीं बख्शा मासूम कलियों को,
माँ हूँ बेटी की बलि का बदला रोंदकर उसे चुकाना है मुझे....
चुटकी सिंदूर भर बन बैठे है सरताज लिये, अधिकार दमन का उन पतिदेवों का शासन हिलाना है मुझे...
पग-पग अग्नि परिक्षा दी
सीता से लेकर सुष्माओं ने ,
कहने को कहते हैं बदल गया ज़माना,
पर पूछो उनसे जिनके उपर ये सब बीती है।
ननननननन कुछ भी तो नहीं बदला,
इंट उठाने वाली से लेकर
कोर्पोरेट जगत की नारी भी,
किसी न किसी तरह सतायी गई है।
बहुत लिख ली कागज़ों पर
नारी दमन की दास्तान,
अब हाथ हथियार उठाने की बारी है।
मत बनो अबला बेबस बेचारी लाचार ,
काली चंड़ी का रुप लो
कर दो हैवानों का बुरा हाल।
ले आओ ये जज़्बा खुद में
हौसलो को बुलंद करो ,
कब तक लिये फिरोगी सीने पर
बेचारी का लेबल ये,
दमन करना ज्यूँ पाप है
तो दमन सहना महापाप है,
तू माता है, तू बेटी है, तू बहन तू भाभी है
नहीं चलने वाली ये दुनिया
तुझ बिन सब लाचार है।
पहचान ले अपनी हस्ती को
तू अपने आप में महान है,
कब तक सीता बन बनकर तुझे
अग्नि में मिल जाना है।