STORYMIRROR

Chandresh Kumar Chhatlani

Others

4  

Chandresh Kumar Chhatlani

Others

आज का पागल

आज का पागल

1 min
237

अक्सर नहीं हँसता हूँ मैं सुर में सुर मिलाने को.

कहाँ लोट पाया चरणों में, जो काबिल नहीं आशीर्वाद देने के.

मैं डराता भी नहीं, किसी को उनकी कमज़ोरी से,

ना ही करता हूँ शिकायत दूसरों की गलतियों की.

भर-भर के गिलास शराब के बनता भी नहीं साकी,

ना कर पाता हूँ दिल से मैं मालिकों के घरेलू काम.

कभी खरीद के देता नहीं टिकट ट्रेन की - फिल्मों की.

ना बनाया कोई ग्रुप – करने को ग्रुपिज्म.

नहीं लिया फायदा किसी की नासमझी का.

चुपचाप अपने काम से रखा था मैंने काम,

चढ़ता रहा पहाड़ों पे श्रम की रस्सी के सहारे.

और खुद को मासूम समझने वाला मैं मूर्ख,

चढ़ तो गया पर्वत काम की सम्पूर्णता के लेकिन -

टेक तक नहीं पाया पैर तरक्की की ज़मीन पे भी, सिर्फ मेहनत से.


Rate this content
Log in