आई रात सुहानी
आई रात सुहानी
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आई रात सुहानी
छाई घनघोर घटा,
छम-छम बरसा पानी
कभी काले-काले मेघा नभ पर छाए
कभी तारक वृन्द नभ में खिल जाए
कभी छाई दूधिया चन्द्रिका धरा पर
कभी छा जाये तम चहुँ ओर
जगमग चमके दीप घर के
बरखा की रैना में
दादुर टर्र-टर्र बोलें
शांत-एकांत समां में
रैन विदा पर बाजे बोलें
देख दृश्य मोहक ऐसा
हिय जन इट-उत डोले
मादकता के मारे
सब यही बोलें
आई रात सुहानी
छाई घनघोर घटा,
छम-छम बरसा पानी
