आधे अधूरे पन्ने
आधे अधूरे पन्ने
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जिंदगी अब किसी किताब सी लगती है
जिसके कुछ पन्ने अधूरे होते हैं
कुछ पन्ने फटे और बिखरे होते हैं
ताउम्र हम चाहत ढूंढते रहते है उस किताब में
एक दिन पता चलता है कि चाहत तो उन्ही पन्नों में थी
जो अधूरे और बिखरे थे यहाँ वहाँ
जिंदगी ऐसे ही गुजर जाती है
मन में चाहत लिए
उन पन्नों को ढूँढ़ते हुए
वह आधे अधूरे पन्ने
जिनमे लिखी थी भीनी खुशबू में लिपटी हुयी कुछ आधी अधूरी बातें
कुछ में इन्तजार का जिक्र था
कुछ में बेबसी थी इनकार की
और किसी में थी खामोशी इकरार की
