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JAI GARG

Others

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आभास (log 5)

आभास (log 5)

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काश उसके क़दमों की आहट का

एहसास किया होता

कानों मे संगीत सी धीमी तरंग

घुलने देते, धड़कनों में

कसूर था उनकी नज़रों का,

क्यो दिल छलनी करते रहे

कोसते रहे समय को,

उनके बेख़ौफ़ इज़हार-ए-सनम।


क़सीदे हम पढ़ते रहे

छुप कर वो बाण चलाते रहे,

छद्म युद्ध ही होगा जब

ठेंगा दिखा कर चलते बने!



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